जीवन परिचय
प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी देश में संस्कृत के वरिष्ठतम प्रोफेसरों में से एक हैं।.
प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी संस्कृत तथा हिन्दी दोनों परिदृश्यों में समान रूप से प्रतिष्ठित तथा स्वीकार्य हैं। संस्कृत क्षेत्र में वे एक विश्व नागरिक की भाँति वे उसमें रहकर उसे बाहर से भी देख सकते हैं। यह दृष्टि बहुत ही स्वस्थ और दुर्लभ है। राधावल्लभ त्रिपाठी संस्कृत को आधुनिकता का संस्कार देने वाले विद्वान् और हिन्दी के प्रखर लेखक व कथाकार हैं।
‘विक्रमादित्यकथा’ उनके द्वारा लिखी असाधारण कथा-कृति है। संस्कृत के महान् गद्यकार महाकवि दण्डी पदलालित्य के लिए विख्यात हैं। ‘दशकुमारचरित’ उनकी चर्चित कृति है। परन्तु डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी को उनकी एक और संस्कृत कृति ‘विक्रमादित्यकथा’ की जीर्ण-शीर्ण पाण्डुलिपि हाथ लग गयी। इस कृति को हिन्दी में औपन्यासिक रूप देकर डॉ. त्रिपाठी ने एक ओर मूल कृति के स्वरूप की रक्षा की है और दूसरी ओर उसे एक मार्मिक कथा के रूप में अवतरित किया है। इस कृति से उस युग का नया परिदृश्य उद्घाटित होता है और पाठक का मनोलोक अनोखे सौंदर्य से भर उठता है।
संस्कृत, हिंदी और अँग्रेजी में उनकी सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें ‘संस्कृत कविता की लोकधर्मी परम्परा’, ‘काव्यशास्त्र और काव्य’, ‘लेक्चर्स ऑन नाट्यशास्त्र विश्वकोश’ (चार खंड) आदि विशेष चर्चित रहे हैं।
‘सन्धानम्’, ‘लहरीदशकम्’, ‘सम्प्लवः’, ‘समष्टि’ आदि उनके प्रमुख संस्कृत काव्य-संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त संस्कृत में उनके तीन मौलिक उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, तीन पूर्णाकार नाटक तथा एक एकांकी-संग्रह भी प्रकाशित हैं जिनमें ‘प्रेमपीयूषम्’, ‘प्रेक्षणसप्तकम्’, ‘नाट्यमण्डपम्’, ‘विक्रमचरितम्’, ‘अभिनवशुकसारिका’ आदि शामिल हैं। ‘दमयन्ती’ एवं ‘भुवनदीप’ (नाटक), ‘पूर्वरंग’, ‘पागल हाथी’ एवं ‘जो मिटती नहीं है’ (कहानी-संग्रह), तथा ‘सत्रन्त’ एवं ‘विक्रमादित्य कथा’ (उपन्यास) हिंदी में रचित उनकी मूल रचनाएँ हैं। उन्होंने संस्कृत की करीब दो दर्जन कृतियों के हिंदी अनुवाद भी किए हैं जिनमें ‘वेदांतसार’, ‘कुमारसंभवम्’, ‘कुंदमाला’, ‘वेणीसंहार’ आदि शामिल हैं।
समय-समय पर विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विद्वत-सम्मेलनों के आयोजनों में उनकी मुखर भूमिका रही है और उन्होंने नाट्य परिषद्, मुक्तस्वाध्यायपीठ, शास्त्रानुशीलनकेंद्र, पांडुलिपि संग्रहालय आदि अनेक अकादमिक संस्थाओं, अध्ययन केंद्रों एवं परिषदों की स्थापना में योगदान किया है।
उन्होंने ‘कामसूत्र’ का अँग्रेज़ी अनुवाद किया है और उसपर टीका लिखी है। ‘नवस्पंदः’, ‘आयाति’, ‘षोडसी’, ‘शुकसारिका’ आदि उनके द्वारा संपादित कृतियाँ हैं।
नया साहित्य:नया साहित्यशास्त्र
'नया साहित्य: नया साहित्यशास्त्र' विद्वान् राधावल्लभ त्रिपाठी की काव्यशास्त्र पर तीसरी पुस्तक है। यह संस्कृत काव्यशास्त्र के अलंकार प्रस्थान की व्यापक वैचारिक और संरचनात्मक आधारभूमि को रेखांकित करती है। अलंकार की व्यावहारिक परिणतियों और अलंकार विमर्श की व्यापक अर्थवत्ता को आज के साहित्य के सन्दर्भ में यहाँ परखा गया है। अलंकार तत्त्व की इसमें प्रस्तुत नई व्याख्या उसकी अछूती सम्भावनाएँ खोलती है तथा साहित्य के अध्ययन के लिए संरचनावादी काव्यशास्त्र की एक भूमिका निर्मित करती है।
संस्कृत के प्रख्यात कवियों के साथ हिन्दी कवियों में 'निराला' और 'मुक्तिबोध' तथा बोरिस पास्तरनाक जैसे रूसी रचनाकारों और मिलान कुन्देरा जैसे उत्तर-आधुनिक युग के लेखकों तक की मीमांसा लेखक ने निर्भीकता के साथ यहाँ की है। लेखक का मानना है कि पश्चिम में सस्यूर, सूसन लैंगर, चॉम्स्की आदि के प्रतिपादन तथा उत्तर-आधुनिकतावाद के सन्दर्भ में भारतीय काव्यचिंतन के अलंकार तत्त्व की महती पीठिका पुनः उजागर करना ज़रूरी है।
मुख्य कृतियाँ
- कथासरित्सागर, संस्कृत साहित्य सौरभ (तीसरा और चौथा खंड),
- आदि कवि वाल्मीकि,
- संस्कृत कविता की लोकधर्मी परंपरा (दो संस्करण),
- काव्यशास्त्र और काव्य (संस्कृत काव्यशास्त्र और काव्यपरंपरा शीर्षक से नया संस्करण),
- भारतीय नाट्य शास्त्र की परंपरा एवं विश्व रंगमंच,
- विक्रमादित्य कथा,
- लेक्चर्स ऑन नाट्यशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र विश्वकोश (चार खंड),
- ए बिब्लिओग्राफी ऑफ अलंकारशास्त्र,
- कादंबरी,
- आधुनिक संस्कृत साहित्य : संदर्भ सूची
पुरस्कार-सम्मान
- साहित्यिक-सांस्कृतिक योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, शंकर पुरस्कार, मीरा सम्मान सहित विभिन्न संस्थाओं एवं अकादमियों के तीन दर्जन से अधिक पुरस्कार एवं प्रशस्तियाँ प्रदान की गई हैं।
- राधावल्लभ त्रिपाठी को उनके कविता संग्रह 'सन्धानम' पर 1994 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।
- बिरला फ़ाउंडेशन के 'शंकर पुरस्कार' सहित और भी अनेक पुरस्कार व सम्मान उन्हें मिल चुके हैं।
- 'पंडित राज सम्मान' (2016)